मैकडोनल्ड

​भूख दोनों को नहीं थी 

पर 

एक दुसरे को बैठ देखने की 

चाह 

मैकडोनल्ड तक ले गई ।


वो खाते खाते जब नज़रें झुकाती 

मैं 

उसका चेहरा ठीक उसी वक़्त 

आँखों में क़ैद कर लेता ।


वो जब मुस्कुरा देती 

मैं खुद को सँभालने 

के चक्कर में 

दो चार फ्रेंच फ्राइज एक साथ 

उठा लेता ।


एक टुकड़ा देकर स्पाइसी चिकेन का

पुछा मुझसे उसने 

तीखा है न ?

उसके होठों से लग के आया 

हुआ टुकड़ा भला कैसे 

तीखा होता 

पर सर हाँ में ही हिला ।


कोक में से एक एक कर 

बर्फ के टुकड़े निकालती 

हुई जब उसने 

मुझे देखा 

मैं भी बर्फ के साथ जैसे थोड़ा पिघल गया ।


लौटते वक़्त बिल के साथ 

उस टेबल पर

मैंने अपना दिल भी रख छोड़ दिया था ।


जाते जाते मुड़कर

दोनों को वहाँ से 

उठा अपने पास ही रख लिया उसने ।।

#Abvishu

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शहर

​यूँ तो बरसों हो गये 

गाँव गये ।


पर सुना है गाँव जाने वाली 

रोज़ की

आखिरी बस में 

लोगों का हँसना 

औरतों का बतियाना

और 

बच्चों का खिलखिलाना होता है ।


शहर में चलने वाली आखिर 

बस में 

सुना किसी का रेप हो गया 😦

#Abvishu

बच्चे 

​एक सीढ़ियाँ उतरते वक़्त

हाथ हिला कर हँस देता ।


कुछ मेट्रो में मुझे देख 

मुस्कुरा देते ।


और कभी कभी 

किसी की गोद में बैठ 

मुझे ख़ुशी का पता बताने 

ऑफिस तक आ जाते ।


रोज़ कुछ बच्चे मुझे ,

बड़े नहीं होने देते ।।

#Abvishu

ख़ुदा

​आँखें बंद कर लूँ जो दुःख में तो,

लगता माँ ने सर पे हाथ रख दिया ।


तस्वीर देख लूँ तुम्हारी तो,

लगता तुमने दिल पे हाथ रख दिया ।



मेरा ख़ुदा हमेशा मेरे साथ ही होता ।।

#Abvishu

​आँखें बंद कर लूँ जो दुःख में तो,

लगता माँ ने सर पे हाथ रख दिया ।


तस्वीर देख लूँ तुम्हारी तो,

लगता तुमने दिल पे हाथ रख दिया ।



मेरा ख़ुदा हमेशा मेरे साथ ही होता ।।

#Abvishu

वनवास

मेरी सलामती की दुआ दिल में लिए
रोज़ माँ सोचती है
राम सा बेटा कब घर आये ।

पैसे की कैकयी ने
शहर का रास्ता अपनाने पर मजबूर किया ।

जाने कब पूरा…ये वनवास हम कर पायें ।।
#Abvishu

दास्ताँ

जो बाज़ार में बिके ये वो,
झूठ नहीं ।
जिसे पैसों से खरीद लो,
वो ख़ुशी भी नहीं ।

ये इक शायर की दास्ताँ है ।
बिछड़ना ही बस झूठ है ,
और दर्द में ही बसी ख़ुशी है ।।

ना तो घर से दूर जाना अच्छा लगता । ना ट्रेन का सफर । और न ही इस शहर की परिस्थितियाँ । पर जाते वक़्त आशीर्वाद देती हुई माँ का चेहरा और सफ़र में अच्छे से जाने को मोबाइल पर समझाती तुम्हारी आवाज़। कुछ चीज़ें अब भी अच्छी है ।।

ना तो घर से दूर जाना अच्छा लगता ।
ना ट्रेन का सफर ।
और न ही इस शहर की परिस्थितियाँ ।

पर जाते वक़्त आशीर्वाद देती हुई माँ का चेहरा
और
सफ़र में अच्छे से जाने को मोबाइल पर समझाती तुम्हारी आवाज़।

कुछ चीज़ें अब भी अच्छी है ।।

माँ

कितना मुश्किल होता है
किसी और के लिए आसां होना ।

कितना आसां हो जाता है सब ,
मुश्किलों में बस माँ का होना ।।

#Abvishu

प्यार का रंग

अपने अकेलेपन को भरने के लिये
अक्सर
लोग घर को चीजों से भर देते है ।

हर एक कोना मेरे घर का
भरा पड़ा था
तेरी यादों से ।

हमने कमरे के उन यादों में
बस
रंग भर दिया ।

मैं तो ज़िन्दगी से हारा हुआ शख्स था ।
तेरे प्यार के रंग में डूबकर ही
तो मैं हरा हुआ था ।
#Abvishu