“ख़ुश हो गये हम तो “

पुरानी दिल्ली आज कुछ नई नई सी लगी और अपनी भी । 
लाल किले की दीवारों के सामने उसके साथ चल मैं आज़ाद महसूस कर रहा था खुद को । वाकिफ़ थी वो उस नई सड़क के पुराने रास्तों से पर रिक्शे में उसके साथ बैठा मैं सब कुछ भूल बैठा था ।

वो चारों तरफ देख रही थी और मेरी नज़र चारों तरफ घूम कर उसके चेहरे पे आकर रुक रही थी ।

दिल यूँ ही थोड़ी मुस्कुरा रहा था और साँस भी आ जा रही थी उसके लिये ।
सड़क पर उसका हाथ पकड़ कर चलते वक़्त मैं आज खुद को खास महसूस कर रहा था । 

ऐसा लग रहा था ज़िन्दगी को इससे ज़्यादा और क्या चाहिये जब हम दोनों बिन बोले बातें कर रहे थे ।
“कौन से रंग का लहँगा अच्छा लग रहा है बताओ न ”

मैं कैसे कह पाता मुझपे तो इश्क़ का रंग चढ़ा हुआ था ।
दाम कम कराते वक़्त उसने पूछा कितना देना चाहिये इसका …तो बस कहते कहते रह गया कि मेरे लिए सबसे बेशकीमती तुम हो ।
यूँ तो घंटो देखा हूँ तुम्हारी तस्वीर को पर जब तू रूबरू आया मैं नज़रें ना मिला पाया । 
शायद तुम्हें भी महसूस हुआ हो मैंने दो बार हाथों को तुम्हारी ज़ुल्फ़ों को सँवारने से रोका । जाने कितनी बार ही नज़दीक रखा अपनी उँगलियों को तुम्हारे की तुम मेरा हाथ थाम लो ।
कहाँ खोये हुये हो तुम? इसका जवाब कहीं नहीं की जगह “तू न हो तो मैं कहाँ हूँ ” देना चाहता था ।
पता भी है तुम्हें वापस लौटने से पहले मैं क्यों तुम्हारे इतने नजदीक खड़ा रहा ।

शायद तुम्हें भी पता हो और वो दीवार जो थी भी नहीं भी उसे तोड़ कर मैं जाते वक़्त तुम्हें सीने से लगा बस इतना कहना चाहता था 
“ख़ुश हो गये हम तो “

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मन कस्तूरी रे

​मैं तो बहाने ढूंढता हूँ मिलने के और तुम कह दो मिलने को तो फिर किसी दिन उससे अच्छा और क्या हो सकता ।
2:10 तक आ जाने को कहा था तुमने  

तुम ध्यान में थी और मैं वक़्त पे था ।
भीड़ में भी एहसास उधर ही ले गये जहाँ तुम इंतज़ार कर रही थी मेरा और मैं हमेशा की तरह इस वक़्त का इंतज़ार ।
मेट्रो में जब तुम्हारे पास खड़ा था तो आँखों की चाहत तुम्हें देखता रहूँ और फिर धीरे धीरे मेट्रो की स्पीड के साथ धड़कनों ने भी रफ़्तार पकड़ लिया जब तुमने अपना गाल मेरे हाथों पर रख दिया ।

वो एहसास कुछ यूँ रख रखा है दिल में की जब भी हाथों को देखता हूँ अपने तो तुम्हारी मुस्कान और गाल की लाली दोनों याद आती है ।
तुम्हारी आदत है इधर उधर सबको देखने की और मेरी आदत तुम हो 

मुझे और कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था ।
मैं तो भूल ही गया था की बिना किसी को कुछ बताये तुमसे मिलने ऑफिस से अचानक निकल गया था पर तुम्हारे सवाल “क्या बोला ऑफिस में” ने याद दिलाया ।
“पता है की जल्दी घर जाना है तुम्हें इसका मतलब ये नहीं तुम इतनी तेज चलो…हम खाये नहीं है कुछ सुबह से और हमको भूख लगा हुआ है ।
अच्छा ठीक है चलो तुमको मोमो खिलाते है उससे ज्यादा कुछ नहीं ।
तुम अपने सारे काम जल्दी जल्दी कर रही थी पर मेरी चाहत इस लम्हे को रोक कर रखने की थी ।

“आगे तो दो राह है ही थोड़ी दूर साथ ही चलने दो”
जाने कितना कुछ बोल देती हो तुम एक साथ…..कभी तुम्हें adidas superstar चाहिये ..कभी smart watch ..और कभी स्वेट शर्ट 

पता है तुम्हें मुझे क्या चाहिये..

कोई बहाना तुमसे मिलने का और थोड़ा सा वक़्त तुम्हारा …नहीं तुम्हारा नहीं …हमारा ।
तुमने कहा चलो मुझे घर के पास वाले मेट्रो तक छोड़ दो…पर मैं तुम्हें छोड़कर वापस जाना ही नहीं चाहता ।
मैं उदास नहीं होना चाहता था पर तुम्हारी आँखों ने मेरे चेहरे की उदासी को पढ़ लिया था शायद इसलिये तुम भी कुछ बोल नहीं रही थी ।

इस बार तुम मुझे देख रही थी मेट्रो में और मैं अपनी उदासी को छिपाने की खातिर इधर उधर ।

तुमसे जितनी बार भी मिला हूँ मेरी एक ख्वाहिश पूरी होती …एक अधूरी रह जाती ।
जो पूरी होती है वो तुमसे मिलने की 

और जो अधूरी रह जाती 

वो तुम्हें गले लगाकर जी भर रोने की ।
कुछ तस्वीरें तुम्हारी आँखों में रख और उस ख्वाहिश को दिल से लगाये मैं फिर से मिलने की चाह में लौट रहा हूँ ।

लिखना तुम…

​जब भी मुझको लिखना 

अपने अरमान लिखना तुम…

तुम्हारे नाम के आगे जो कहा नहीं गया 

उसे बोलने का समाधान लिखना तुम…

सब कहते प्यार में उड़ रहा हूँ आजकल

अपने मोहब्बत का आसमान लिखना तुम…

इश्क़ को नादान और दिल को परेशान लिखना तुम ।।

जब बन ही गये हो खुदा मेरे तो 

क्यूँ न हर जन्म में मिलते रहने का वरदान लिखना तुम…

मिलूँ तुम्हें ही आँखें भले ही बंद हो जायें

रूह के अमर होने का ऐलान लिखना तुम…

कर खुद को मेरे हवाले 

अपनी प्यारी हँसी लिये

खुद को इश्क़ से अंजान लिखना तुम…

जिस पर यकीन ना हो दिल को 

मिलने का वो बहाना लिखना तुम…

पढ़ते पढ़ते जहाँ मैं रुक कर मुस्कुरा दूँ 

खत में वो अफसाना लिखना तुम…

जो गुजरी है दोनों पे मिल के लौटते वक़्त 

दिल का उस जगह पे ठहर जाना लिखना तुम…

जो होता है इश्क़ में मामूली 

उसे भी एक नया ज़माना लिखना तुम…

मेरी बातें सुनते सुनते सो जाना वो तुम्हारा 

जाग कर फिर मेरे नाम को पुकारना लिखना तुम…

मुझे बिगड़ा बताकर 

मेरे बिगड़े बालों का सँवारना लिखना तुम…

जीने का ये बहाना

मेरे मनाना तुम्हारा रूठ जाना

लिखना तुम…

होता था जो सफ़र पे 

अच्छे से जाना 

और 

छोटी छोटी बातों का समझाना लिखना तुम…

सफ़र संगीत का 

​संगीत का सफ़र बड़ा सुहाना होता है ।

पर कभी सोचा है कोई सफ़र ऐसा भी हो जो संगीत के लिये हो ?

मैंने सोचा भी है और किया भी है ।
पहले उस सफ़र की बात करते है जिसने मुझे उस सफ़र के लिए प्रेरित किया जो आज भी दिल को संगीतमय कर जाता है ।
दोस्तों के साथ राँची से बैंगलोर तक का सफ़र था ।

मुकेश साहब से लेकर हिमेश तक सबके गानों के cassette walkman के साथ बैग में रखा हुआ था ।

खिड़की वाली सीट पर बैठ कानों में earphone लगा गाने सुनने लगा ।
हर बदलते गाने के साथ एहसास भी बदल रहे थे ।

कोई गाँव की याद दिला रहा था 

कोई ममता की छाँव की 

तो कोई 

पहले प्यार की ।
इस सफ़र को तय किये लगभग सालों निकल गये थे पर खिड़की पे बैठ ट्रेन की आवाज़ और चेहरे को छूकर गुजरती हवा के साथ जो सुकून गाने सुनने में आया वो घर वापस आ खो दिया था मैंने ।
इक शाम सोचा क्यूँ न उस एहसास को आज फिर से जिंदा किया जाये ।

बैग में walkman cassette और CDPlayer डाला …पर्स में कुछ पैसे डाले और चुप चाप मम्मी के पास जाकर बोला kolkata दोस्त पास जा रहा हूँ …आ जाउँगा एक दो दिन में और मम्मी से मिले 200 ₹ भी जेब में डाल सीधा स्टेशन गया …हटिया हावड़ा का general टिकट लिया और किसी तरह खिड़की वाली सीट पर जा कर बैठ गया ।
जैसे जैसे हवा चेहरे को छु कर गुजरती मैं अपनी इस हरकत पे ख़ुश हो रहा था ।
पूरी रात गाने सुनता रहा ।

RafiSahab की आवाज़ उस दिन और ही मन को भा रही थी ।

सुबह कोलकाता घूमने निकल गया ।
कोलकाता की हवाओं में संगीत है ।

उस दिन मालूम हुआ की इसे City Of Joy क्यूँ कहते है ।

रफ़ी साहब के posters ख़रीदे …कुल्हड़ वाली चाय पी…ट्राम पे किशोर दा के गाने सुने…पार्क स्ट्रीट में स्ट्रॉबेरी खाया और गाने सुनता हुआ स्टेशन आ गया ।

रात वापसी की टिकट ली और भीड़ में खड़ा हो गया सीट पाने को ।
फिर गाने सुनते सुनते कब संगीत की गोद में सो गया पता नहीं चला ।

सुबह वापस घर आ कर सोच रहा था की सच मैं सिर्फ गाने सुनने को इतनी दूर चला गया?
संगीत का सफ़र …सफ़र संगीत का दोनों यूँ तो एक ही है पर मेरे लिये एक ऐसी याद जो मुझे हमेशा सुकून पहुँचाती है ।

Dear Zindagi

बैचेन आत्माओं को 
नींद कहाँ आती है ?
रोज़ की तरह
देर रात तक जाग रहा था ।

नींद आने से पहले तक
हर पहले मुलाकात के बाद की मुलाकात
का ख़याल
कि कब वो सुबह आयेगी ।

सुबह अच्छी हो तुम
एक उम्मीद लेके आती हो
उम्मीद शायद आज कोई फ़ोन या मैसेज आ जाये और तुम पूछो
की
“free है तुम”
आज इस छोटे से दिल की बड़ी सी उम्मीद पूरी होने वाली थी जब तुमने फ़ोन करके कहा
“मिलेगा आज”
ये वही दिल है जो पिछली बार तुमसे मिलकर लौटने को तैयार नहीं था और आज फिर से मिलने को बेक़रार था ।

अजीब है न मिलने का भी मन होता और साथ साथ ये ख़याल भी की आज तो मिल लूँगा
“इंतज़ार फिर लम्बा होगा”

तुम्हारी दी हुई घड़ी बार बार इशारा कर रही थी की बस करो अब हो भी गया चलना है!
बार बार देखने से आईने में शक्ल नहीं बदलने वाली ।

मेट्रो की भीड़ में तुम्हारा ही चेहरा दिखाई दे रहा था क्यूँ ना दे कानों में बज रहे गाने के बोल थे
“देखूँ चाहे जिसको कुछ कुछ तुझ सा दिखता क्यूँ है”

तुम पहले पहुँच चुकी थी और मुझे तो बस तुम तक पहुँचना होता है ।
एक और बोल “मेरी हर होशियारी बस तुम तक”

जाने कितनी बार पहले भी ऐसा किया है तुम्हें देखने पर
दूर से ही तुम्हें देख ख्यालों में गले लगा लेना और उस लम्हे को यादों में बसा लेना ।

“ऐ लड़का लेट है तुम”
तुम्हें क्या पता कितनी जल्दी थी आने को ।

मैंने देख लिया था तुम्हारा देखना मुझे और तुमने भी मेरी ख़ुशी को हर बार की तरह आँखों में पढ़ लिया था ।

“तू आये सामने तो मैं सुधर जाता हूँ”

पता नहीं हर बार कितना कुछ खरीदना होता है तुम्हें पर ख़ुशी ये भी कि उस पुरे वक़्त में मैं तुम्हें जी भर देख सकता हूँ ।

“तुम न आज जूता खरीद लो पता नहीं कैसा कैसा जूता पहने रहता है ।
हाँ तो खरीद दो ना ।

ले लो तुम ।
तुमने जूता दिलवा दिया और अब मेरे पास एक और निर्जीव चीज है जिसमें मेरी ज़िन्दगी बसती है ।

“Dear Zindagi”
ऐ लड़की जल्दी जल्दी खरीदो टाइम हो गया है मूवी का
“चुप रहो तुम …तुम्हीं लेट आया है और अब कायें कायें कर रहा है ।

थिएटर की उस हल्की सी रोशनी में जब भी तुम्हारी आँखों को देख रहा था
रफ़ी साहब बार बार कह रहे थे
“तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है”

सच कभी कहा नहीं तुमसे पर तुम्हारी आँखें बहुत खूबसूरत है ।

शायद तुम्हें भी हो रहा हो वो एहसास जो बैठे बैठे दिल को सता रहा था ।
मैं क्यूँ इतना डरता हूँ ?
पता नहीं तुम बुरा मान जाओगी ?
ऐसे कैसे तुम्हारा हाथ पकड़ लूँ ?

Dear Zindagi की जगह Fear Zindagi चल रहा था दिलो दिमाग में ।
ये डर …धडकनों का तेज होना और किसी बहाने तुम्हारे करीब आना सब जायज था ।

तुम्हें पता एक और नींद होती है जो तुम्हारे साथ होने पर आती है
खयालों की नींद
ये ख़याल की तुम्हारे काँधे पे सर रख कर आँखें बंद कर सो जाऊँ ।
इन सब ख्यालों का interval हो गया था ।

मैं चुपचाप तुमसे कितना कुछ बोल रहा था ।
इस बार शायद तुमने सब कुछ सुन लिया था ।।

उँगलियों का स्पर्श कितना प्यारा होता है आज पता चला ।
पता नहीं कहाँ से थोड़ी हिम्मत आ गई और तुम्हारे काँधे पे सर रख दिया ।

“कोई रोक लो इस लम्हे को यहाँ”

और फिर
“कितना चमेली का तेल लगाता है तुम”
और थोड़े गुस्से से मेरा सर का हटा लेना और इंतज़ार करना की तुम कहोगी “अच्छा ठीक है ठीक है रख लो”

हम दोनों ही जानते है की किसी बात के बाद एक दुसरे का जवाब क्या होगा और जब वही जवाब मिले तो दिल ही दिल में मुस्कुरा देना बिलकुल वैसे ही जैसे
जब मैं पूछता हूँ
“गुस्सा हो”
और
तुम्हारा जवाब
“na na”

जब सारी लाइटें जल गई और स्क्रीन पर ‘नाम’ डिस्प्ले हो रहे थे
मुझे एक गाना याद आ रहा था ।


हमने देखी है उन आँखों की महकती ख़ुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई ‘नाम’ न दो

इश्क़

​बातें रोज नहीं होती हमारी 

पर हर दिन 

उसकी सोच हमें लगे प्यारी ।।
अब हर बात पे उसका जिक्र

नहीं होता ।

पर वो ठीक रहे ये फिक्र भी

कम नहीं होता ।।
चाँद की तरह रातों को 

घटता बढ़ता रहता 

उसकी यादों का सिलसिला ।

पर 

फिर भी चाँदनी कम नहीं होती ।।
कोई वादा नहीं किया हमने 

पर 

अब भी उसका इंतज़ार होता है ।
आवाज़ कानों तक आ जाये 

या उसकी

तस्वीर आँखों के सामने 

मेरे लिये वही बहार होती है ।।

मुलाक़ात

पता होता की मुमकिन नहीं पर कुछ चाहतें कहाँ जाती दिल से ।

ऐसी ही एक चाहत रोज़ होती की तुमसे मुलाक़ात हो जाये ।


Monday साथ उदासी लेकर आता पर उस रोज़ इक फ़ोन कॉल ने सारे गिले शिकवे दूर कर दिये ।


“कल मिलूँगी तुमसे ठीक “

ऑफिस है ?
है तो पर जब भी बोलोगी आ जाऊंगा ।
मन उस डे सफ़र पे निकल पड़ा उससे पहले की मुलाक़ात की यादों को संजोता ।
सच कहा गया की किसी से इश्क़ हो जाये तो इंसान बेहतर बन जाता ।

मुस्कान चेहरे पे यूँ आ रुकी की जो देखता बोल जाता क्या बात आज बड़े ख़ुश लग रहे हो ।
बात ख़ुशी की थी भी की बात हो गयी उससे और मिलने की चाहत भी कल पूरी हो जायेगी ।
चेहरे पे मुस्कान 

बैग में कार्गो जीन्स 

और जहन में उसका ख़याल लिये 

ऑफिस के लिये निकला ।
मेट्रो में आज सीट की चाहत भी नहीं थी ।

ट्रैफिक को भी गाली नहीं दिया 

और ऑफिस भी जल्दी पहुँच गया ।
रोज़ की तरह आज फ़ोन साइलेंट पर नहीं था और चार्ज पे लगा रखा था ।

जितने भी काम मिल रहे थे सब को तुरंत निपटा रहा था और ध्यान फ़ोन पर सारा ।

हर मैसेज पे फ़ोन चेक करता और फिर 

“कब तक आओगे”
मैं 12 बजे निकलूँगा ऑफिस से जहाँ बोली हो आ जाऊँगा ।
सर कुछ जरुरी काम आ गया है मुझे 12 बजे निकलना होगा जो भी काम यहाँ का बोल दीजिये अभी जल्दी से कर देता ।।
दिलों की नजदीकियाँ दूरीयाँ कम कर देती ।

कब mall पहुँचा उसके बारे में सोचता पता ही नहीं चला ।
चाहत तो रहती देखता रहूँ पर जब वो देख ले आँखें झुक ही जाती है ।

झुकी नज़रों से उसके पास गया ।
भैया के लिये कुछ खरीद रही थी और जब भी वो नज़रें झुकाती मैं जी भर देख लेता पर फिर थोड़ी देर में लगता की जी तो भरता ही नहीं ।
उसके पीछे चलते चलते इक वक़्त आया जब वो ठीक मेरे आगे थी ।

वो पता नहीं क्या देख रही थी पर मेरी नज़रें उसकी झुकी हुई गर्दन पे आ रुकी थी ।
दिल और हाथ का तालमेल बिगड़ रहा था ।

हाथ उठ रहा था उसके कन्धों तक जाने को 

और दिल नासमझ सब समझते हुये रोक रहा था मुझे ।
वो जो अचानक पीछे मुड़ गई हाथ डर कर खुद नीचे हो गये और एक बार फिर गले लगाने की तमन्ना अधूरी रह गई ।

“वो ख़ुश-रंग साड़ी”

ग्याहरवीं

जब हर दूसरी लड़की पसंद आ जाती थी मेरे दोस्तों को मैं अपने पसंदीदा गानों के कैसेट ढूंढता था ।

हम चार दोस्त साथ ही बैठते थे ।

“ये सही है यार ! भाई मुझे तो ये पसंद आ गई! तो किसी को मैडम से ही प्यार हो रहा था ! ”

मेरे दो दोस्तों को भी हुआ वो भी एक ही लड़की से। जब मुझसे बोला मैंने कहा “यार और कोई नहीं मिली ….और हाइट इतना कम”

मैंने ना ही दोस्तों की बातों पर ध्यान दिया और ना ही मुझे इन सब में दिलचस्पी थी पर धीरे धीरे दोस्तों की उस लड़की से दोस्ती हो गई और मेरी भी दो चार बातें हो जाया करती थी उससे ।

बारहवीं के बाद सब दोस्त अलग हो गये और उस लड़की का ध्यान भी दिल से चला गया सबके ।

 

IIT aur AIEEE की तैयारी को मैंने एक साल दे दिये पर साला अंत में बैंगलोर की राह ही पकड़नी पड़ी ।

इंजीनियरिंग ,नया लैपटॉप और फ़ोन में इन्टरनेट ……..पढ़ाई को छोड़ कर सब कुछ होता था उस लैपटॉप से और इन सब में सबसे ज्यादा Orkut.

 

सब जानने वाले और वो जिन्हें नहीं भी जानता friendlist से जुड़ते चले गये ।

एक दिन उस लड़की का प्रोफाइल देखा और request भी भेज दी ।

पहले से अब सुन्दर हो गयी थी पर शायद लम्बी नहीं ।

कुछ दिन के बाद message कर ही दिया की

– और बताओ कहाँ हो

: Girls college 2nd year Aur tum

– यार तब तो तुम senior हो गयी मैं First year

और क्या बात करूँ इसी सोच में बात वहीँ ख़त्म हो गई उस दिन ।

पर पता नहीं क्यूँ मुझे मन था और बात करूँ …….अगले दिन फिर से मैसेज कर दिया

– तुम maths ली या bio?

: यार पापा ने maths दिलवा दिया । और तुम मोटे हुए या अब भी कुपोषित हो ?

– मोटा तो नहीं हुआ पर लम्बा हो गया हूँ जो तुम नहीं हो रही 🙂

: और कोई gf बनी ।

– gf और मेरी ?

: हाँ क्यूँ नहीं ।। तुम अच्छे हो ज्यादा बोलते नहीं पर समझते हो सब ।

 

दिल में चल रहा था क्या नंबर मांग लूँ …क्या सोचेगी ..देगी या नहीं ..और क्या बोल कर माँगू ?  बोल ही दिया की स्कूल के बाद किसी दोस्त से बात नहीं होता …….वो लोग orkut पर भी नहीं एक तुम ही दिखी …………….अपना नंबर दे दो

और फिर उसके reply से पहले हज़ारों reply दिमाग में आ गये ।

मुझे पता नहीं था की वो नंबर दे देगी और मैं सहवाग के bat speed की तरह उसे save करने लगा ।

किस नाम से save करूँ ? ………………..गाने सुन रहा था तो Music ही रख दिया नाम 🙂

 

अगले दिन मैसेज की जगह कॉल करने का मन था । कान के साथ दिमाग में भी Music ही चल रहा था ।

हाथों ने दिल की सुनी और

– Hello कैसी हो । मैं विशाल बोल रहा ।

: हाँ बोलो ।

कुछ थोड़ी इधर उधर की बातें और फिर धीरे धीरे रोज़ रात को थोड़ी बातें ।

क्या ये वही लड़की जिसे मैं स्कूल में पसंद नहीं करता था ?

पर अब बस लगता Music बोलती रहे मैं सुनता रहूँ ।

मिलने की चाह होने लगी दिल में और इस चाह को दिल से लगाये कब तीन साल निकल गये समझ नहीं आया ।

वो अब एक कॉलेज में लेक्चरर बन चुकी थी और मैं नौकरी की तलाश में था ………इसी बीच बैंगलोर से घर जाने का प्लान हुआ और मुझे पता था वो पटना में है ।

उस तीन साल के इंतज़ार को ख़त्म करने की चाह में मैंने पूछ दिया

– मिलोगी मुझसे

: कैसे

– मैंने कहा राँची पटना होकर चला जाउँगा बस तुम हाँ बोल दो उसने इस बार हाँ कर दिया ।।

 

अब दिल में बस एक ही ख़याल और ख़ुशी की उससे मिलना ……दिन भर सोचता रहता क्या लेकर जाऊँ उसके लिये और फिर अचानक मन में आया क्यूँ न एक साड़ी दे दूँ ।

बताया था उसने की साड़ी पहन पढ़ाने जाना होता ।

पर क्या वो साड़ी लेगी ?

और मैं कैसे साड़ी खरीदूंगा ?

फिर एक दिन अपनी एक दोस्त को कहा की मुझे किसी को साड़ी देना तुम ला दोगी क्या ?

सबसे पहले तो उसने पूछा किसे देना ?

और जब बताया सब बात तो बोली कल ला दूँगी ।

 

साड़ी को अच्छे से बैग में रख लिया ।

अगले दिन की ट्रेन थी और इक ख़ुशी ये भी थी की पटना छोटी से भी मिल लूँगा । (छोटी मेरी ममेरी बहन जिसे मैं बहुत मानता ) ……………………….यूँ तो बहुत बार पटना जाना हुआ है पर इस बार दिल में कुछ अलग ही एहसास था ।

 

जैसे ही मामा के घर पहुँचा मेरी हालत ख़राब । वहां मेरे भैया भी आये हुए थे और मेरे बैग में साड़ी !

मैंने बैग को इक कोना पकड़ा दिया की किसी को दिखे नहीं ।

उसे फ़ोन कर चुका था पटना में हूँ और कह भी दिया जब भी मिलना हो बता देना मैं जहाँ बोलोगी आ जाऊंगा ।

अगले दिन शाम उसका फ़ोन आया!

: क्या तुम बोरिंग रोड आ सकते हो ? ……………….मैं भला कैसे ना कहता ।

हाँ मैं आ जाऊंगा 4 बजे तक ।

स्कूल ….तस्वीरों में …..skype सब जगह उसे देखा था पर क्यूँ इस ख़ुशी में डर भी था । धड़कने तेज हो गई आँखें झुक गयी जब वो सामने आई ।

: कुछ खाये हो या नहीं । उसने पुछा मैंने सुना भी पर कुछ कह नहीं पाया । अरे बोलोगे कुछ ?

– हाँ चलो कहीं खाते ।

चलते मौर्या लोक मैंने कहा वहां अच्छा रेस्टोरेंट है पर पैसे तुम दोगी समझी ।।

: हाँ रे कंजूस चलो पर मुझे देखा हुआ नहीं तुम जानते हो न कहाँ जाना ।

चलो ऑटो ले लेते ।

एक सीट आगे एक सीट पीछे ……मन ही मन कहा क्यूँ भगवान ऐसा क्यूँ आज भी दूर ही रखोगे !

मैं किराया दे उसे देखता हुआ उतरा । रास्ता पता होते हुये भी जाने कैसे उस दिन गलत जगह उतर गया ।

जब उसे बताया तो गुस्से में प्यार से बोली –

तुम न —- जब देखा हुआ नहीं होता क्यूँ तेज बनते हो पूछो किसी से ? ……या तुम रहने ही दो मैं ही पूछ लेती । ऐसा लग रहा था जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी माँ से डांट सुन रहा हो और चुप चाप खड़ा हो ।

किसी तरह हम restaurant पहुँच ही गये और बैग उसके बगल में रख मैं सामने बैठ गया ।

: सोना चांदी भर रखे हो क्या बैग में जो छोड़ नहीं रहे इसको और सामने क्यूँ बैठे हो इधर बगल में आकर बैठो ।

मैं तो खुश ही हो गया ये सुन कर ।

: कितने पतले हो न तुम । खाते हो नहीं बस चाय चाय और चायें चायें । पर आज इतना चुप कैसे हो ?

क्यूँ मुझे देख दुखी हो गए हो क्या ।

………….     मैं कितना खुश था कैसे कहता उससे … जब भी मेरा शरीर उसके किसी भी हिस्से को छू जाता मैं डर कर थोड़ा अलग हो जाता और ऐसा करता देख वो मुस्कुरा देती ।

मेरी प्लेट में जब अपने प्लेट से वो खाना डाल रही थी तो ……पेट का पता नहीं पर मन तृप्त हो रहा था ।

चाहत थी उस लम्हें को रोक लूँ और वो यूँ ही मेरे पास बैठी रहे ।।

 

थोड़े समय बाद उसने कहा अब चलो मुझे जल्दी घर पहुँचना होता यहाँ relative के यहाँ रुकी हुई हूँ ।

उसके ना करते रहने के बावजूद भी मैं बोलता रहा चलो मैं भी चलता छोड़ने । चाहत थी जितना हो सके वक़्त उसके साथ गुजारूं और साड़ी देने का सही समय भी तलाश रहा था ।

इस बार ख़ुदा मेरे साथ था ……ऑटो में दोनों अगल बगल बैठे और उसने मेरा हाथ पकड़ पूछा की ये निशान कैसा ।

उस दिन पहली बार बचपन में हाथ कटने की ख़ुशी हुई ।

मेरे जहन में बस एक ख़याल था की क्या वो मुझसे साड़ी लेगी ?

क्यूँ नहीं लेगी इतना प्यार से लाया हूँ ।

थोड़ी हिम्मत कर कहा की मैं कुछ लाया हूँ तुम्हारे लिए और तुमको लेना पड़ेगा !

: क्या लाये हो पहले ये तो बताओ पागल …………….धीरे से साड़ी निकाल उसकी गोद में रख दिया

अरे पागल हो क्या ? मैं ये कैसे ले सकती बताओ घर जाकर क्या बोलूंगी मैं की ये कहां से आया ?

 

मैं वापस नहीं लूँगा तुम्हारे लिये लाया हूँ समझी तुम ।

 

इक लम्बी ख़ामोशी के बाद ड्राईवर ने कहा यहीं उतरना मैडम या आगे ?   वो उतर गई बिना साड़ी लिये ।

मैं दुःख में bye तक नहीं बोल पाया ।

वापस बैग में रख उदास मामाजी के यहाँ लौट आया ।

मुझे समझ नहीं आ रहा था क्यूँ मैं इतना दुखी ।

 

रात उसका एक मैसेज आया की मूँह बनाकर कर मत बैठे रहो । मुझे पता तुम गुस्सा और दुखी हो मुझसे ।

आँसू को रोक कर मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया …इतने सालों बाद तुमसे मिला आज क्या उदास हो सकता हूँ मैं बोलो ! मुझे ही नहीं समझ की साड़ी थोड़ी लेना चाहिये था । मुझे बहुत अच्छा लगा तुमसे मिलके आज । हमेशा मुस्कुराती रहना ।।

उस रोज़ मैं लोबो के साथ पूरी रात जागता रहा ….शायद जानवरों को समझ होती हमारी उदासी की । उस दिन उसने मुझ पर भौंका नहीं और मैं भी उससे डरा नहीं था | दोनों सारी रात जागे रहे ||

 

26 जुलाई 2012 की उस रात मेरे साथ ख़ुशी भी थी … उदासी भी । उसकी अमानत है वो साड़ी जिसे अब सारी ज़िन्दगी यादों में पहननी है ।

 

 

स्मृतियों के पदचिन्ह

बरसों पहले जाना हुआ था गाँव,

मुझे तो सब पहचानते थे पर मेरी यादों में बस कुछ धूमिल चेहरे थे ।

रास्ते का मंदिर जहाँ दिन भर बैठा रहता अब और बड़ा हो गया था ।

मेरी तरह अब भी कुछ बच्चे वहाँ मंदिर के गोल गोल घूम रहे थे ।

 

जिन कच्ची राहों पे साइकिल चलाना सीखा था अब वो भी चमकने लगी थी ।

जिस आम के पेड़ ने सबसे ज्यादा मेरे पत्थर झेले थे वो मौसम की मार न झेल सका ।

ऐसा लग रहा था सब कुछ एक बार फिर आँखों के सामने से गुजर रहा हो ।

 

मुझे याद है एक बाबा मेरे घर पर हमेशा बैठे रहते थे । आँखों से दिखना कम हो गया था पर आशीर्वाद हैसियत देख कर नहीं देते थे ।

आँखें घर पहुँचते ही उन्हें ढूँढने लगी । मालूम था वही आशीर्वाद मिलेगा जो रोज़ बचपन में मेरे सर पर हाथ रख दिया करते थे ।

पर वहाँ ना वो थे न उनकी वो खाट जिसके चारों तरफ बच्चों का मेला लगता था ।

 

मुझे समझ जाना चाहिये था इतने सालों बाद जा रहा तो उन्होंने आशीर्वाद देते हुये दुनिया को अलविदा कहा होगा ।

पर क्यूँ ये ख़याल एक बार भी नहीं आया ?

क्यूँ मुझे लग रहा था वो वहीँ होंगे ?

क्यूँ उस आशीर्वाद को सुनने की चाह थी ?

BkdfNPiCUAILa75

आँसू पलकों को घेरने लगे……… एहसास सीने में उतरने लगे ।

कई बार ऐसा होता है कि मुद्दतें गुज़र जाती हैं पर दिल में यादों का बसेरा मिटता नहीं…हमारी खातिर वहीं होती हैं..जब भी पीछे मुड़कर देखते हैं हम |

 

#Abvishu

 

 

मैं या मैं नहीं 

​वो मैं जो 

उठ कर सोचता नहीं था 

दिन कैसे बीतेगा ।


वही मैं जो वक़्त नहीं 

अपने हिसाब से चलता था ।


सोच समझ कर बोलता अब 

जो 

कुछ भी बोलकर सोचता न था ।


विश्वास नहीं होता अब की 

ये भी इसी जन्म की बात है ।।

#Abvishu