Dear Zindagi

बैचेन आत्माओं को 
नींद कहाँ आती है ?
रोज़ की तरह
देर रात तक जाग रहा था ।

नींद आने से पहले तक
हर पहले मुलाकात के बाद की मुलाकात
का ख़याल
कि कब वो सुबह आयेगी ।

सुबह अच्छी हो तुम
एक उम्मीद लेके आती हो
उम्मीद शायद आज कोई फ़ोन या मैसेज आ जाये और तुम पूछो
की
“free है तुम”
आज इस छोटे से दिल की बड़ी सी उम्मीद पूरी होने वाली थी जब तुमने फ़ोन करके कहा
“मिलेगा आज”
ये वही दिल है जो पिछली बार तुमसे मिलकर लौटने को तैयार नहीं था और आज फिर से मिलने को बेक़रार था ।

अजीब है न मिलने का भी मन होता और साथ साथ ये ख़याल भी की आज तो मिल लूँगा
“इंतज़ार फिर लम्बा होगा”

तुम्हारी दी हुई घड़ी बार बार इशारा कर रही थी की बस करो अब हो भी गया चलना है!
बार बार देखने से आईने में शक्ल नहीं बदलने वाली ।

मेट्रो की भीड़ में तुम्हारा ही चेहरा दिखाई दे रहा था क्यूँ ना दे कानों में बज रहे गाने के बोल थे
“देखूँ चाहे जिसको कुछ कुछ तुझ सा दिखता क्यूँ है”

तुम पहले पहुँच चुकी थी और मुझे तो बस तुम तक पहुँचना होता है ।
एक और बोल “मेरी हर होशियारी बस तुम तक”

जाने कितनी बार पहले भी ऐसा किया है तुम्हें देखने पर
दूर से ही तुम्हें देख ख्यालों में गले लगा लेना और उस लम्हे को यादों में बसा लेना ।

“ऐ लड़का लेट है तुम”
तुम्हें क्या पता कितनी जल्दी थी आने को ।

मैंने देख लिया था तुम्हारा देखना मुझे और तुमने भी मेरी ख़ुशी को हर बार की तरह आँखों में पढ़ लिया था ।

“तू आये सामने तो मैं सुधर जाता हूँ”

पता नहीं हर बार कितना कुछ खरीदना होता है तुम्हें पर ख़ुशी ये भी कि उस पुरे वक़्त में मैं तुम्हें जी भर देख सकता हूँ ।

“तुम न आज जूता खरीद लो पता नहीं कैसा कैसा जूता पहने रहता है ।
हाँ तो खरीद दो ना ।

ले लो तुम ।
तुमने जूता दिलवा दिया और अब मेरे पास एक और निर्जीव चीज है जिसमें मेरी ज़िन्दगी बसती है ।

“Dear Zindagi”
ऐ लड़की जल्दी जल्दी खरीदो टाइम हो गया है मूवी का
“चुप रहो तुम …तुम्हीं लेट आया है और अब कायें कायें कर रहा है ।

थिएटर की उस हल्की सी रोशनी में जब भी तुम्हारी आँखों को देख रहा था
रफ़ी साहब बार बार कह रहे थे
“तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है”

सच कभी कहा नहीं तुमसे पर तुम्हारी आँखें बहुत खूबसूरत है ।

शायद तुम्हें भी हो रहा हो वो एहसास जो बैठे बैठे दिल को सता रहा था ।
मैं क्यूँ इतना डरता हूँ ?
पता नहीं तुम बुरा मान जाओगी ?
ऐसे कैसे तुम्हारा हाथ पकड़ लूँ ?

Dear Zindagi की जगह Fear Zindagi चल रहा था दिलो दिमाग में ।
ये डर …धडकनों का तेज होना और किसी बहाने तुम्हारे करीब आना सब जायज था ।

तुम्हें पता एक और नींद होती है जो तुम्हारे साथ होने पर आती है
खयालों की नींद
ये ख़याल की तुम्हारे काँधे पे सर रख कर आँखें बंद कर सो जाऊँ ।
इन सब ख्यालों का interval हो गया था ।

मैं चुपचाप तुमसे कितना कुछ बोल रहा था ।
इस बार शायद तुमने सब कुछ सुन लिया था ।।

उँगलियों का स्पर्श कितना प्यारा होता है आज पता चला ।
पता नहीं कहाँ से थोड़ी हिम्मत आ गई और तुम्हारे काँधे पे सर रख दिया ।

“कोई रोक लो इस लम्हे को यहाँ”

और फिर
“कितना चमेली का तेल लगाता है तुम”
और थोड़े गुस्से से मेरा सर का हटा लेना और इंतज़ार करना की तुम कहोगी “अच्छा ठीक है ठीक है रख लो”

हम दोनों ही जानते है की किसी बात के बाद एक दुसरे का जवाब क्या होगा और जब वही जवाब मिले तो दिल ही दिल में मुस्कुरा देना बिलकुल वैसे ही जैसे
जब मैं पूछता हूँ
“गुस्सा हो”
और
तुम्हारा जवाब
“na na”

जब सारी लाइटें जल गई और स्क्रीन पर ‘नाम’ डिस्प्ले हो रहे थे
मुझे एक गाना याद आ रहा था ।


हमने देखी है उन आँखों की महकती ख़ुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई ‘नाम’ न दो

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