मन कस्तूरी रे

​मैं तो बहाने ढूंढता हूँ मिलने के और तुम कह दो मिलने को तो फिर किसी दिन उससे अच्छा और क्या हो सकता ।
2:10 तक आ जाने को कहा था तुमने  

तुम ध्यान में थी और मैं वक़्त पे था ।
भीड़ में भी एहसास उधर ही ले गये जहाँ तुम इंतज़ार कर रही थी मेरा और मैं हमेशा की तरह इस वक़्त का इंतज़ार ।
मेट्रो में जब तुम्हारे पास खड़ा था तो आँखों की चाहत तुम्हें देखता रहूँ और फिर धीरे धीरे मेट्रो की स्पीड के साथ धड़कनों ने भी रफ़्तार पकड़ लिया जब तुमने अपना गाल मेरे हाथों पर रख दिया ।

वो एहसास कुछ यूँ रख रखा है दिल में की जब भी हाथों को देखता हूँ अपने तो तुम्हारी मुस्कान और गाल की लाली दोनों याद आती है ।
तुम्हारी आदत है इधर उधर सबको देखने की और मेरी आदत तुम हो 

मुझे और कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था ।
मैं तो भूल ही गया था की बिना किसी को कुछ बताये तुमसे मिलने ऑफिस से अचानक निकल गया था पर तुम्हारे सवाल “क्या बोला ऑफिस में” ने याद दिलाया ।
“पता है की जल्दी घर जाना है तुम्हें इसका मतलब ये नहीं तुम इतनी तेज चलो…हम खाये नहीं है कुछ सुबह से और हमको भूख लगा हुआ है ।
अच्छा ठीक है चलो तुमको मोमो खिलाते है उससे ज्यादा कुछ नहीं ।
तुम अपने सारे काम जल्दी जल्दी कर रही थी पर मेरी चाहत इस लम्हे को रोक कर रखने की थी ।

“आगे तो दो राह है ही थोड़ी दूर साथ ही चलने दो”
जाने कितना कुछ बोल देती हो तुम एक साथ…..कभी तुम्हें adidas superstar चाहिये ..कभी smart watch ..और कभी स्वेट शर्ट 

पता है तुम्हें मुझे क्या चाहिये..

कोई बहाना तुमसे मिलने का और थोड़ा सा वक़्त तुम्हारा …नहीं तुम्हारा नहीं …हमारा ।
तुमने कहा चलो मुझे घर के पास वाले मेट्रो तक छोड़ दो…पर मैं तुम्हें छोड़कर वापस जाना ही नहीं चाहता ।
मैं उदास नहीं होना चाहता था पर तुम्हारी आँखों ने मेरे चेहरे की उदासी को पढ़ लिया था शायद इसलिये तुम भी कुछ बोल नहीं रही थी ।

इस बार तुम मुझे देख रही थी मेट्रो में और मैं अपनी उदासी को छिपाने की खातिर इधर उधर ।

तुमसे जितनी बार भी मिला हूँ मेरी एक ख्वाहिश पूरी होती …एक अधूरी रह जाती ।
जो पूरी होती है वो तुमसे मिलने की 

और जो अधूरी रह जाती 

वो तुम्हें गले लगाकर जी भर रोने की ।
कुछ तस्वीरें तुम्हारी आँखों में रख और उस ख्वाहिश को दिल से लगाये मैं फिर से मिलने की चाह में लौट रहा हूँ ।

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लिखना तुम…

​जब भी मुझको लिखना 

अपने अरमान लिखना तुम…

तुम्हारे नाम के आगे जो कहा नहीं गया 

उसे बोलने का समाधान लिखना तुम…

सब कहते प्यार में उड़ रहा हूँ आजकल

अपने मोहब्बत का आसमान लिखना तुम…

इश्क़ को नादान और दिल को परेशान लिखना तुम ।।

जब बन ही गये हो खुदा मेरे तो 

क्यूँ न हर जन्म में मिलते रहने का वरदान लिखना तुम…

मिलूँ तुम्हें ही आँखें भले ही बंद हो जायें

रूह के अमर होने का ऐलान लिखना तुम…

कर खुद को मेरे हवाले 

अपनी प्यारी हँसी लिये

खुद को इश्क़ से अंजान लिखना तुम…

जिस पर यकीन ना हो दिल को 

मिलने का वो बहाना लिखना तुम…

पढ़ते पढ़ते जहाँ मैं रुक कर मुस्कुरा दूँ 

खत में वो अफसाना लिखना तुम…

जो गुजरी है दोनों पे मिल के लौटते वक़्त 

दिल का उस जगह पे ठहर जाना लिखना तुम…

जो होता है इश्क़ में मामूली 

उसे भी एक नया ज़माना लिखना तुम…

मेरी बातें सुनते सुनते सो जाना वो तुम्हारा 

जाग कर फिर मेरे नाम को पुकारना लिखना तुम…

मुझे बिगड़ा बताकर 

मेरे बिगड़े बालों का सँवारना लिखना तुम…

जीने का ये बहाना

मेरे मनाना तुम्हारा रूठ जाना

लिखना तुम…

होता था जो सफ़र पे 

अच्छे से जाना 

और 

छोटी छोटी बातों का समझाना लिखना तुम…

सफ़र संगीत का 

​संगीत का सफ़र बड़ा सुहाना होता है ।

पर कभी सोचा है कोई सफ़र ऐसा भी हो जो संगीत के लिये हो ?

मैंने सोचा भी है और किया भी है ।
पहले उस सफ़र की बात करते है जिसने मुझे उस सफ़र के लिए प्रेरित किया जो आज भी दिल को संगीतमय कर जाता है ।
दोस्तों के साथ राँची से बैंगलोर तक का सफ़र था ।

मुकेश साहब से लेकर हिमेश तक सबके गानों के cassette walkman के साथ बैग में रखा हुआ था ।

खिड़की वाली सीट पर बैठ कानों में earphone लगा गाने सुनने लगा ।
हर बदलते गाने के साथ एहसास भी बदल रहे थे ।

कोई गाँव की याद दिला रहा था 

कोई ममता की छाँव की 

तो कोई 

पहले प्यार की ।
इस सफ़र को तय किये लगभग सालों निकल गये थे पर खिड़की पे बैठ ट्रेन की आवाज़ और चेहरे को छूकर गुजरती हवा के साथ जो सुकून गाने सुनने में आया वो घर वापस आ खो दिया था मैंने ।
इक शाम सोचा क्यूँ न उस एहसास को आज फिर से जिंदा किया जाये ।

बैग में walkman cassette और CDPlayer डाला …पर्स में कुछ पैसे डाले और चुप चाप मम्मी के पास जाकर बोला kolkata दोस्त पास जा रहा हूँ …आ जाउँगा एक दो दिन में और मम्मी से मिले 200 ₹ भी जेब में डाल सीधा स्टेशन गया …हटिया हावड़ा का general टिकट लिया और किसी तरह खिड़की वाली सीट पर जा कर बैठ गया ।
जैसे जैसे हवा चेहरे को छु कर गुजरती मैं अपनी इस हरकत पे ख़ुश हो रहा था ।
पूरी रात गाने सुनता रहा ।

RafiSahab की आवाज़ उस दिन और ही मन को भा रही थी ।

सुबह कोलकाता घूमने निकल गया ।
कोलकाता की हवाओं में संगीत है ।

उस दिन मालूम हुआ की इसे City Of Joy क्यूँ कहते है ।

रफ़ी साहब के posters ख़रीदे …कुल्हड़ वाली चाय पी…ट्राम पे किशोर दा के गाने सुने…पार्क स्ट्रीट में स्ट्रॉबेरी खाया और गाने सुनता हुआ स्टेशन आ गया ।

रात वापसी की टिकट ली और भीड़ में खड़ा हो गया सीट पाने को ।
फिर गाने सुनते सुनते कब संगीत की गोद में सो गया पता नहीं चला ।

सुबह वापस घर आ कर सोच रहा था की सच मैं सिर्फ गाने सुनने को इतनी दूर चला गया?
संगीत का सफ़र …सफ़र संगीत का दोनों यूँ तो एक ही है पर मेरे लिये एक ऐसी याद जो मुझे हमेशा सुकून पहुँचाती है ।

Dear Zindagi

बैचेन आत्माओं को 
नींद कहाँ आती है ?
रोज़ की तरह
देर रात तक जाग रहा था ।

नींद आने से पहले तक
हर पहले मुलाकात के बाद की मुलाकात
का ख़याल
कि कब वो सुबह आयेगी ।

सुबह अच्छी हो तुम
एक उम्मीद लेके आती हो
उम्मीद शायद आज कोई फ़ोन या मैसेज आ जाये और तुम पूछो
की
“free है तुम”
आज इस छोटे से दिल की बड़ी सी उम्मीद पूरी होने वाली थी जब तुमने फ़ोन करके कहा
“मिलेगा आज”
ये वही दिल है जो पिछली बार तुमसे मिलकर लौटने को तैयार नहीं था और आज फिर से मिलने को बेक़रार था ।

अजीब है न मिलने का भी मन होता और साथ साथ ये ख़याल भी की आज तो मिल लूँगा
“इंतज़ार फिर लम्बा होगा”

तुम्हारी दी हुई घड़ी बार बार इशारा कर रही थी की बस करो अब हो भी गया चलना है!
बार बार देखने से आईने में शक्ल नहीं बदलने वाली ।

मेट्रो की भीड़ में तुम्हारा ही चेहरा दिखाई दे रहा था क्यूँ ना दे कानों में बज रहे गाने के बोल थे
“देखूँ चाहे जिसको कुछ कुछ तुझ सा दिखता क्यूँ है”

तुम पहले पहुँच चुकी थी और मुझे तो बस तुम तक पहुँचना होता है ।
एक और बोल “मेरी हर होशियारी बस तुम तक”

जाने कितनी बार पहले भी ऐसा किया है तुम्हें देखने पर
दूर से ही तुम्हें देख ख्यालों में गले लगा लेना और उस लम्हे को यादों में बसा लेना ।

“ऐ लड़का लेट है तुम”
तुम्हें क्या पता कितनी जल्दी थी आने को ।

मैंने देख लिया था तुम्हारा देखना मुझे और तुमने भी मेरी ख़ुशी को हर बार की तरह आँखों में पढ़ लिया था ।

“तू आये सामने तो मैं सुधर जाता हूँ”

पता नहीं हर बार कितना कुछ खरीदना होता है तुम्हें पर ख़ुशी ये भी कि उस पुरे वक़्त में मैं तुम्हें जी भर देख सकता हूँ ।

“तुम न आज जूता खरीद लो पता नहीं कैसा कैसा जूता पहने रहता है ।
हाँ तो खरीद दो ना ।

ले लो तुम ।
तुमने जूता दिलवा दिया और अब मेरे पास एक और निर्जीव चीज है जिसमें मेरी ज़िन्दगी बसती है ।

“Dear Zindagi”
ऐ लड़की जल्दी जल्दी खरीदो टाइम हो गया है मूवी का
“चुप रहो तुम …तुम्हीं लेट आया है और अब कायें कायें कर रहा है ।

थिएटर की उस हल्की सी रोशनी में जब भी तुम्हारी आँखों को देख रहा था
रफ़ी साहब बार बार कह रहे थे
“तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है”

सच कभी कहा नहीं तुमसे पर तुम्हारी आँखें बहुत खूबसूरत है ।

शायद तुम्हें भी हो रहा हो वो एहसास जो बैठे बैठे दिल को सता रहा था ।
मैं क्यूँ इतना डरता हूँ ?
पता नहीं तुम बुरा मान जाओगी ?
ऐसे कैसे तुम्हारा हाथ पकड़ लूँ ?

Dear Zindagi की जगह Fear Zindagi चल रहा था दिलो दिमाग में ।
ये डर …धडकनों का तेज होना और किसी बहाने तुम्हारे करीब आना सब जायज था ।

तुम्हें पता एक और नींद होती है जो तुम्हारे साथ होने पर आती है
खयालों की नींद
ये ख़याल की तुम्हारे काँधे पे सर रख कर आँखें बंद कर सो जाऊँ ।
इन सब ख्यालों का interval हो गया था ।

मैं चुपचाप तुमसे कितना कुछ बोल रहा था ।
इस बार शायद तुमने सब कुछ सुन लिया था ।।

उँगलियों का स्पर्श कितना प्यारा होता है आज पता चला ।
पता नहीं कहाँ से थोड़ी हिम्मत आ गई और तुम्हारे काँधे पे सर रख दिया ।

“कोई रोक लो इस लम्हे को यहाँ”

और फिर
“कितना चमेली का तेल लगाता है तुम”
और थोड़े गुस्से से मेरा सर का हटा लेना और इंतज़ार करना की तुम कहोगी “अच्छा ठीक है ठीक है रख लो”

हम दोनों ही जानते है की किसी बात के बाद एक दुसरे का जवाब क्या होगा और जब वही जवाब मिले तो दिल ही दिल में मुस्कुरा देना बिलकुल वैसे ही जैसे
जब मैं पूछता हूँ
“गुस्सा हो”
और
तुम्हारा जवाब
“na na”

जब सारी लाइटें जल गई और स्क्रीन पर ‘नाम’ डिस्प्ले हो रहे थे
मुझे एक गाना याद आ रहा था ।


हमने देखी है उन आँखों की महकती ख़ुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई ‘नाम’ न दो