“वो ख़ुश-रंग साड़ी”

ग्याहरवीं

जब हर दूसरी लड़की पसंद आ जाती थी मेरे दोस्तों को मैं अपने पसंदीदा गानों के कैसेट ढूंढता था ।

हम चार दोस्त साथ ही बैठते थे ।

“ये सही है यार ! भाई मुझे तो ये पसंद आ गई! तो किसी को मैडम से ही प्यार हो रहा था ! ”

मेरे दो दोस्तों को भी हुआ वो भी एक ही लड़की से। जब मुझसे बोला मैंने कहा “यार और कोई नहीं मिली ….और हाइट इतना कम”

मैंने ना ही दोस्तों की बातों पर ध्यान दिया और ना ही मुझे इन सब में दिलचस्पी थी पर धीरे धीरे दोस्तों की उस लड़की से दोस्ती हो गई और मेरी भी दो चार बातें हो जाया करती थी उससे ।

बारहवीं के बाद सब दोस्त अलग हो गये और उस लड़की का ध्यान भी दिल से चला गया सबके ।

 

IIT aur AIEEE की तैयारी को मैंने एक साल दे दिये पर साला अंत में बैंगलोर की राह ही पकड़नी पड़ी ।

इंजीनियरिंग ,नया लैपटॉप और फ़ोन में इन्टरनेट ……..पढ़ाई को छोड़ कर सब कुछ होता था उस लैपटॉप से और इन सब में सबसे ज्यादा Orkut.

 

सब जानने वाले और वो जिन्हें नहीं भी जानता friendlist से जुड़ते चले गये ।

एक दिन उस लड़की का प्रोफाइल देखा और request भी भेज दी ।

पहले से अब सुन्दर हो गयी थी पर शायद लम्बी नहीं ।

कुछ दिन के बाद message कर ही दिया की

– और बताओ कहाँ हो

: Girls college 2nd year Aur tum

– यार तब तो तुम senior हो गयी मैं First year

और क्या बात करूँ इसी सोच में बात वहीँ ख़त्म हो गई उस दिन ।

पर पता नहीं क्यूँ मुझे मन था और बात करूँ …….अगले दिन फिर से मैसेज कर दिया

– तुम maths ली या bio?

: यार पापा ने maths दिलवा दिया । और तुम मोटे हुए या अब भी कुपोषित हो ?

– मोटा तो नहीं हुआ पर लम्बा हो गया हूँ जो तुम नहीं हो रही 🙂

: और कोई gf बनी ।

– gf और मेरी ?

: हाँ क्यूँ नहीं ।। तुम अच्छे हो ज्यादा बोलते नहीं पर समझते हो सब ।

 

दिल में चल रहा था क्या नंबर मांग लूँ …क्या सोचेगी ..देगी या नहीं ..और क्या बोल कर माँगू ?  बोल ही दिया की स्कूल के बाद किसी दोस्त से बात नहीं होता …….वो लोग orkut पर भी नहीं एक तुम ही दिखी …………….अपना नंबर दे दो

और फिर उसके reply से पहले हज़ारों reply दिमाग में आ गये ।

मुझे पता नहीं था की वो नंबर दे देगी और मैं सहवाग के bat speed की तरह उसे save करने लगा ।

किस नाम से save करूँ ? ………………..गाने सुन रहा था तो Music ही रख दिया नाम 🙂

 

अगले दिन मैसेज की जगह कॉल करने का मन था । कान के साथ दिमाग में भी Music ही चल रहा था ।

हाथों ने दिल की सुनी और

– Hello कैसी हो । मैं विशाल बोल रहा ।

: हाँ बोलो ।

कुछ थोड़ी इधर उधर की बातें और फिर धीरे धीरे रोज़ रात को थोड़ी बातें ।

क्या ये वही लड़की जिसे मैं स्कूल में पसंद नहीं करता था ?

पर अब बस लगता Music बोलती रहे मैं सुनता रहूँ ।

मिलने की चाह होने लगी दिल में और इस चाह को दिल से लगाये कब तीन साल निकल गये समझ नहीं आया ।

वो अब एक कॉलेज में लेक्चरर बन चुकी थी और मैं नौकरी की तलाश में था ………इसी बीच बैंगलोर से घर जाने का प्लान हुआ और मुझे पता था वो पटना में है ।

उस तीन साल के इंतज़ार को ख़त्म करने की चाह में मैंने पूछ दिया

– मिलोगी मुझसे

: कैसे

– मैंने कहा राँची पटना होकर चला जाउँगा बस तुम हाँ बोल दो उसने इस बार हाँ कर दिया ।।

 

अब दिल में बस एक ही ख़याल और ख़ुशी की उससे मिलना ……दिन भर सोचता रहता क्या लेकर जाऊँ उसके लिये और फिर अचानक मन में आया क्यूँ न एक साड़ी दे दूँ ।

बताया था उसने की साड़ी पहन पढ़ाने जाना होता ।

पर क्या वो साड़ी लेगी ?

और मैं कैसे साड़ी खरीदूंगा ?

फिर एक दिन अपनी एक दोस्त को कहा की मुझे किसी को साड़ी देना तुम ला दोगी क्या ?

सबसे पहले तो उसने पूछा किसे देना ?

और जब बताया सब बात तो बोली कल ला दूँगी ।

 

साड़ी को अच्छे से बैग में रख लिया ।

अगले दिन की ट्रेन थी और इक ख़ुशी ये भी थी की पटना छोटी से भी मिल लूँगा । (छोटी मेरी ममेरी बहन जिसे मैं बहुत मानता ) ……………………….यूँ तो बहुत बार पटना जाना हुआ है पर इस बार दिल में कुछ अलग ही एहसास था ।

 

जैसे ही मामा के घर पहुँचा मेरी हालत ख़राब । वहां मेरे भैया भी आये हुए थे और मेरे बैग में साड़ी !

मैंने बैग को इक कोना पकड़ा दिया की किसी को दिखे नहीं ।

उसे फ़ोन कर चुका था पटना में हूँ और कह भी दिया जब भी मिलना हो बता देना मैं जहाँ बोलोगी आ जाऊंगा ।

अगले दिन शाम उसका फ़ोन आया!

: क्या तुम बोरिंग रोड आ सकते हो ? ……………….मैं भला कैसे ना कहता ।

हाँ मैं आ जाऊंगा 4 बजे तक ।

स्कूल ….तस्वीरों में …..skype सब जगह उसे देखा था पर क्यूँ इस ख़ुशी में डर भी था । धड़कने तेज हो गई आँखें झुक गयी जब वो सामने आई ।

: कुछ खाये हो या नहीं । उसने पुछा मैंने सुना भी पर कुछ कह नहीं पाया । अरे बोलोगे कुछ ?

– हाँ चलो कहीं खाते ।

चलते मौर्या लोक मैंने कहा वहां अच्छा रेस्टोरेंट है पर पैसे तुम दोगी समझी ।।

: हाँ रे कंजूस चलो पर मुझे देखा हुआ नहीं तुम जानते हो न कहाँ जाना ।

चलो ऑटो ले लेते ।

एक सीट आगे एक सीट पीछे ……मन ही मन कहा क्यूँ भगवान ऐसा क्यूँ आज भी दूर ही रखोगे !

मैं किराया दे उसे देखता हुआ उतरा । रास्ता पता होते हुये भी जाने कैसे उस दिन गलत जगह उतर गया ।

जब उसे बताया तो गुस्से में प्यार से बोली –

तुम न —- जब देखा हुआ नहीं होता क्यूँ तेज बनते हो पूछो किसी से ? ……या तुम रहने ही दो मैं ही पूछ लेती । ऐसा लग रहा था जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी माँ से डांट सुन रहा हो और चुप चाप खड़ा हो ।

किसी तरह हम restaurant पहुँच ही गये और बैग उसके बगल में रख मैं सामने बैठ गया ।

: सोना चांदी भर रखे हो क्या बैग में जो छोड़ नहीं रहे इसको और सामने क्यूँ बैठे हो इधर बगल में आकर बैठो ।

मैं तो खुश ही हो गया ये सुन कर ।

: कितने पतले हो न तुम । खाते हो नहीं बस चाय चाय और चायें चायें । पर आज इतना चुप कैसे हो ?

क्यूँ मुझे देख दुखी हो गए हो क्या ।

………….     मैं कितना खुश था कैसे कहता उससे … जब भी मेरा शरीर उसके किसी भी हिस्से को छू जाता मैं डर कर थोड़ा अलग हो जाता और ऐसा करता देख वो मुस्कुरा देती ।

मेरी प्लेट में जब अपने प्लेट से वो खाना डाल रही थी तो ……पेट का पता नहीं पर मन तृप्त हो रहा था ।

चाहत थी उस लम्हें को रोक लूँ और वो यूँ ही मेरे पास बैठी रहे ।।

 

थोड़े समय बाद उसने कहा अब चलो मुझे जल्दी घर पहुँचना होता यहाँ relative के यहाँ रुकी हुई हूँ ।

उसके ना करते रहने के बावजूद भी मैं बोलता रहा चलो मैं भी चलता छोड़ने । चाहत थी जितना हो सके वक़्त उसके साथ गुजारूं और साड़ी देने का सही समय भी तलाश रहा था ।

इस बार ख़ुदा मेरे साथ था ……ऑटो में दोनों अगल बगल बैठे और उसने मेरा हाथ पकड़ पूछा की ये निशान कैसा ।

उस दिन पहली बार बचपन में हाथ कटने की ख़ुशी हुई ।

मेरे जहन में बस एक ख़याल था की क्या वो मुझसे साड़ी लेगी ?

क्यूँ नहीं लेगी इतना प्यार से लाया हूँ ।

थोड़ी हिम्मत कर कहा की मैं कुछ लाया हूँ तुम्हारे लिए और तुमको लेना पड़ेगा !

: क्या लाये हो पहले ये तो बताओ पागल …………….धीरे से साड़ी निकाल उसकी गोद में रख दिया

अरे पागल हो क्या ? मैं ये कैसे ले सकती बताओ घर जाकर क्या बोलूंगी मैं की ये कहां से आया ?

 

मैं वापस नहीं लूँगा तुम्हारे लिये लाया हूँ समझी तुम ।

 

इक लम्बी ख़ामोशी के बाद ड्राईवर ने कहा यहीं उतरना मैडम या आगे ?   वो उतर गई बिना साड़ी लिये ।

मैं दुःख में bye तक नहीं बोल पाया ।

वापस बैग में रख उदास मामाजी के यहाँ लौट आया ।

मुझे समझ नहीं आ रहा था क्यूँ मैं इतना दुखी ।

 

रात उसका एक मैसेज आया की मूँह बनाकर कर मत बैठे रहो । मुझे पता तुम गुस्सा और दुखी हो मुझसे ।

आँसू को रोक कर मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया …इतने सालों बाद तुमसे मिला आज क्या उदास हो सकता हूँ मैं बोलो ! मुझे ही नहीं समझ की साड़ी थोड़ी लेना चाहिये था । मुझे बहुत अच्छा लगा तुमसे मिलके आज । हमेशा मुस्कुराती रहना ।।

उस रोज़ मैं लोबो के साथ पूरी रात जागता रहा ….शायद जानवरों को समझ होती हमारी उदासी की । उस दिन उसने मुझ पर भौंका नहीं और मैं भी उससे डरा नहीं था | दोनों सारी रात जागे रहे ||

 

26 जुलाई 2012 की उस रात मेरे साथ ख़ुशी भी थी … उदासी भी । उसकी अमानत है वो साड़ी जिसे अब सारी ज़िन्दगी यादों में पहननी है ।

 

 

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3 thoughts on ““वो ख़ुश-रंग साड़ी”

  1. कुछ आंसू कुछ ख़ुशी और कुछ जवानी का अल्हड़पन और पता नही क्या क्या है आप की स्मृति के चिन्हों में कही कही तो ऐसा लगा कि मेरे एहसास आप की कलम से लिखे हुए है बस साडी की जगह कानो की बाली थी। आह !

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